ईद / रमजान
#तुम_मांस_खाकर_पशु_पक्षियों_की_कब्र_पेट_में_मत_बनाओ!
आज कुछ मुस्लिम बहनों से बात हुई, हंसते हुए बता रहीं थीं कि, “शाम को इफ्तार के समय हम कुछ भी खा सकते हैं”। खाने पीने में कोई परहेज़ नहीं है भले ही, मांस पका कर खा लो।
परंतु मांस खाने का आदेश #अल्लाह का नहीं है। न ही कुरान शरीफ़ में इसके खाने का ज़िक्र अल्लाह ने स्वयं किया। जो वेद या ग्रंथ मांस खाने को कहे वह परमात्मा का ज्ञान हो ही नहीं सकता। ऐसा तो केवल कोई शैतान ही ज़बरदस्ती करवाता है। आपको बता दें कि मुसलमानों की सबसे पवित्र पुस्तक #कुरान है जिसे पूरा मुस्लिम समाज मानता है।महत्वपूर्ण बात यह है कि परमात्मा ने इसमें मांस खाने का कहीं कोई आदेश नहीं दिया ना ही लिखवाया। मांस खाने का आदेश #जिब्राइल_फरिश्ते का था जिसे मुस्लिम भाई परमात्मा का फरमान मान बैठे और पाप के गर्त में डूब गए। पूरे दिन भूखे प्यासे रह कर पांच वक्त की नमाज़ पढ़ते हुए अल्लाह से अपने #गुनाहों_की_माफ़ी मांगते हो। शाम को पेट भरने और जीभ के स्वाद के लिए जानवर को #हलाल करके पका कर खाते हो।
सुबह माफी, शाम को पाप।
#काफिर सो जो करद चलावे, हंस तड़फडे़ ताला।
ऐसे तीसों रोजे जाहीं रसातल, बहिश्त बीच मुंह काला।।
ये क्रम निरंतर तीस दिन रोजे़ के रूप में चलता रहता है और #पाप_पुण्य का ये खेल जीवन पर्यन्त तक बना रहता है। नासमझ इंसान इससे अल्लाह को खुश करना चाहता है। अल्लाह नादान नहीं है उसने कभी किसी #मुस्लिम या अन्य को मांस खाने का आदेश नहीं दिया। उसको अपने सभी बच्चे प्यारे हैं। चाहे वह #मनुष्य हो या जानवर। जो गलत काम करे उसे काफ़िर कहते हैं। यानि जानवर को कलमा पढ़कर हलाल (हत्या) करने वाला भी काफिर ही तो हुआ। वह तो #परमात्मा का गुनहगार और उस #आत्मा का कातिल हुआ।
मुस्लिम धर्म की पुस्तक #नसिहते_हादौ में लिखा है। कि गाय का दूध और घी तुम्हारी तन्दुरूस्ती के लिए बहुत ज़रूरी है। इसका गोश्त नुकसानदेह है और वह बीमारी पैदा करता है, जबकि इसका #दूध दवा है। गाय शरीर की धनी है इसका दूध अमृत के समान है। प्रभु ने मनुष्य के खाने के लिए बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वह भोजन के लिए प्रदान किए हैं।
#हज़रत_मुहम्मद जी जब 63 वर्ष की आयु में अपने 1 लाख शिष्यों के साथ आखिरी हज को गए जिसे हिज्जतूल भी कहते हैं। अपने मुस्लिम भाईयों को यह संदेश दिया कि, ”खून खराबे व ब्याज आदि के करीब कभी नहीं फटकना।"
“रोजा बंग नमाज दई रे, बिस्मिल की नहीं बात कही रे"
मोहम्मद जी का केवल इतना ही आदेश था। उन्होंने गाय कभी बिस्मिल नहीं की।
हज़रत मुहम्मद जी ने कभी मांस नहीं खाया, न खाने का आदेश दिया। इन क़ाज़ी, मुल्लाओं ने, फरिश्तों ने डरा धमकाकर कर किसी के शरीर में प्रवेश करके ये सब गलत अफवाएं फैलाई। हज़रत मुहम्मद जी ने तो अपनी सिद्धि से एक मरी हुई गाय जीवित करी थी।
“मारी गऊ शब्द के तीरं ऐसे होते मुहम्मद पीरं।”
वचन से गाय मारी और वचन से ही जीवित कर दी थी। #मुहम्मद_जी जैसी भक्ति कोई मुसलमान नहीं कर सकता। मुहम्मद जी ने जब वचन की सिद्धि से मरी गाय जीवित की तो लोगों ने इसे पर्व का रूप दे दिया। गरीबदास जी महाराज जी अपनी वाणी में हज़रत मुहम्मद जी के बारे में बताते हैं..
“नबी मुहम्मद नमस्कार है राम रसूल कहाया 1 लाख 80 को सौगंध जिन नहीं करद चलाया।
अरस कुरस पर अल्लह तख्त है खालिक बिन नहीं खाली।
वे पैगंबर पाक़ पुरुष थे, साहिब के अब्दाली।”
नबी मुहम्मद जी तो परमात्मा की बहुत नेक आत्मा थीं। उन्होंने कभी मांस नहीं खाया, न अपने 1,80,000 शिष्यों को खाने को कहा।
कबीर साहेब जी ने भी 600 वर्ष पहले गौ और अन्य जीव हत्या का कड़ा विरोध किया था...
दूधु दही घृत अंब्रित देती। निरमल जा की काइआ।
गोबरि जा के धरती सूची। सा तै आणी गाइआ।।
रोमि रोमि उआ के देवता बसत है, ब्रहम बसै रग माही।
बैतरनी मिरतक मुकति करत है, सा तुम छेदहु नाही।
मुसलमान गाय भखी, हिन्दु खाया सूर ।
गरीबदास दोनों दीन से, राम रहिमा दूर ।।
क़ुरान में कई आयतें ऐसी हैं, जिनमें दूध और ऊन देने वाले पशुओं का ज़िक्र किया गया है। भारत में #गौ_हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई है। जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए उस वक़्त तक यहां गाय और सूअर का वध नहीं किया जाता था। #हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सूअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे, लेकिन अंग्रेजों को इन दोनों ही पशुओं के मांस की ज़रूरत थी। इसके अलावा वे भारत पर कब्ज़ा करना चाहते थे। उन्होंने मुसलमानों को भड़काया कि “क़ुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय की क़ुर्बानी हराम है” इसलिए उन्हें गाय की क़ुर्बानी देनी चाहिए। उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए।
बाबर, हुमायूँ, अकबर, जहांगीर, शाहजहां, मुहम्मदशाह आलम जैसे मुगल शासकों ने अपने शासनकाल में गाय की कुर्बानी बन्द कर रखी थी। उनका मानना था ‘मुसलमानों को गाय नहीं मारनी चाहिए। ऐसा करना हदीस के खिलाफ है।’
तो आप स्वयं निर्णय कीजिए जब #जीव_हत्या करना और मांस खाना दोनों ही अल्लाह के आदेश नहीं हैं तो जो ऐसा कर रहे हैं क्या वह अल्लाह के गुनहगार नहीं हुए। अल्लाह तो ऐसे पापियों से कोसों दूर रहता है। मांस भक्षण करने वालों को अल्लाह का दीदार स्वप्न में भी नहीं हो सकता। स्वर्ग तो बहुत दूर की सोच है।
हरमनु मन फिस बर्दे यरहम कुसुर्रहमान।।
तो फिर मुस्लिम भाई क्यों मांस खाते हैं? मांस खाने वाला व्यक्ति /कसाई किसी भी मज़हब का हो वह नरक ही जाएगा।
कबीर, दिन को रोज़ा रहत है, रात हनत है गाय ।
यह खून वह बंदगी, कहो कैसे खुशी खुदाय ।।
कबीर,खूब खाना है खीचड़ी, मांही परी टुक लौन ।
मांस पराया खायकै, गला कटावै कौन ।।
इस्लाम धर्म में लिखा है , सभी प्राणियों पर दया करना सबसे बड़ा धर्म है। “बिस्मिल्लाह रहमान ए रहीम” अर्थात खुदा सब पर रहम करने वाला है।” “तू मांस खाकर पशु पक्षियों की क़ब्र पेट में मत बना ।” हज़रत अली गौर कीजिए कि क्या आप वास्तव में रोज़ा कर रहे हैं?
#रमज़ान न केवल भोजन से दूर रहने के बारे में है, बल्कि रहम कीजिए उन बेजुबानों पर जो बोल नहीं सकते। वे भी हम सबकी तरह ख़ुदा के बनाए हुए जीव हैं। फर्क केवल इतना है वह जानवर हैं और हम इंसान। ‘ बदला कहीं न जात है तीन लोक के माहीं ‘। परमात्मा के विधान अनुसार आज आप जिसे काट रहे हैं, मौका और दस्तूर पड़ने पर वह भी आपके साथ ऐसा ही करेगा। #रोज़ा रखने का तात्पर्य परमात्मा से अपने किए गुनाहों की माफ़ी मांगना है। न कि गुनाहों में नित इज़ाफ़ा करते रहना। अपनी आत्मा को नम्र बनाओ। अपने गुनाहों को जीव हत्या करके और जीभ के स्वाद के लिए और न बढा़इये। आत्मा नरम दिल है ये मन पापी है जो जीभ के स्वाद के लिए पाप करवाता है। परमात्मा से अपने गुनाहों के लिए रहम मांगिए और रहम कीजिए बेजुबानों पर। यह तभी संभव है जब खुदा की दी पुस्तक कुरान शरीफ़ को खुदा का बाखबर स्वयं समझाए। कुराऩे पा़क को समझने के लिए बाखबर की तलाश कीजिए (सूरत फुर्कानी आयत 52-59)। फिर अल्लाह के दीदार के लिए पाक़ मन से #बाखबर के बताए #भक्ति_मार्ग पर चलना होगा, उसकी तलाश करनी होगी। वह अल्लाह जो सब आत्माओं का जनक है इस समय पृथ्वी पर #संत_रामपाल_जी_महाराज_जी (बाखबर) के रूप में मौजूद है यह वही #अल्लाह है जिसकी महिमा का गुणगान कुरान शरीफ़ की आयतें करती हैं।।
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